Wednesday 27 February, 2013

सार्वजनिक बहसों से बुज़ुर्ग ग़ायब ही हो गए


लोकसभा में बुजुर्गों की सामाजिक सुरक्षा पर बहस चल रही थी। यह चर्चा हैदराबाद बम धमाकों के कारण हर तरह की ख़बरों से गायब थी। मैं भी अचानक लोकसभा टीवी पर चर्चा सुनने लगा। कांग्रेस के जय प्रकाश अग्रवाल ने निजी विधेयक पेश किया था। जिसे सुनने के लिए कम ही सांसद मौजूद थे। मगर जो बोल रहे थे अपनी-अपनी जानकारियों से लैस थे। उन भाषणों के साथ मैं भी उन दृश्यों से गुजऱने लगा कि गाँव के घरों में बुज़ुर्गों की क्या हालत है। यह वो जरूरी मुद्दा है जिसे सुनने के लिए पूरे सदन को मौज़ूद होना चाहिए था। खैर अच्छी बात ये रही कि जितने भी सांसदों ने बोला उन सबने ख़ाली कुर्सियों की कमी पूरी कर दी। इतनी कि दो घंटे की चर्चा को एक और घंटे के लिए बढ़ाना पड़ा। हमारी राजनीति ऐसे मुद्दों से नहीं चलती, इसीलिए बड़े नेता हैदराबाद बम धमाकों पर नाहक तू-तू मैं-मैं कर रहे थे।

हमारे देश में करीब आठ करोड़ वरिष्ठ नागरिक हैं। अव्वल तो वरिष्ठ नागरिकों की उम्र सीमा में ही राज्यों से लेकर विभागों में अंतर है। कहीं साठ साल की उम्र में वरिष्ठ नागरिक की मान्यता है, तो कहीं पैंसठ साल। सांसद मांग कर रहे थे कि वरिष्ठ नागरिकों के लिए उम्र का एक ही पैमाना होना चाहिए। जयप्रकाश अग्रवाल ने अपने निजी विधेयक में सुझाव दिया है कि जि़लास्तर पर बुज़ुर्गों के लिए बेहतरीन आश्रय का निर्माण किया जाए। कांग्रेस के सांसद लाल सिंह ने जोरदार तरीके से कहा कि बुज़ुर्गों को सामाजिक सुरक्षा देते वक्त एपीएल और बीपीएल की श्रेणी समाप्त कर दी जाए। लाल सिंह भावुक होकर बोल रहे थे कि अगर हम बुज़ुर्गों का ख्याल नहीं रख सकते तो लानत है हमारे लना मंत्री और सरकार होने पर।

आप जानते हैं कि सरकार ने वृद्धावस्था पेंशन के लिए उम्र साठ साल कर दी है और पेंशन की राशि दो सौ रुपये महीने से बढ़ाकर तीन सौ रुपये कर दी है। अस्सी साल से ऊपर के बुज़ुर्गों को पाँच सौ रुपये मासिक पेंशन दी जाती है। क्या यह राशि मज़ाक नहीं है। जेडीयू के सांसद मंगनी लाल मंडल ने कहा कि राज्यों को छूट है कि केंद्र की तय राशि में वे अपना अंश जोड़ सकते हैं पर इसके बाद भी कहीं भी छह सौ रुपये से ज़्यादा पेंशन नहीं है। यह अंतर क्यों होना चाहिए। सबको समान पेंशन मिलनी चाहिए। कांग्रेस सांसद लाल सिंह ने कहा कि पेंशन की राशि दो सौ नहीं दो हजार या पांच हजार होनी चाहिए।

इस बहस में कई दलों के नेता शामिल थे। कोई राजनीति नहीं कर रहा था मगर एक दूसरे का सहयोग ही कर रहे थे, ताकि सरकार बुज़ुर्गों के लिए व्यवस्था कर सके। बीजू जनता दल के सांसद ने बुज़ुर्गों की सेवा के लिए जिलों में नर्सों की उपलब्धता पर ज़ोर दिया। उनकी बीमारियों की चर्चा की और कहा कि स्वास्थ्य पर ध्यान दिया जाना चाहिए। मंगनी लाल मंडल ने कहा कि ऐसी व्यवस्था हो कि सबको पेंशन मिले। प्रधान सूचित करे कि हमारे गाँव में कोई वंचित नहीं है। वक्त गया है कि सरकार बुज़ुर्गों की जि़म्मेदारी ले।

समाज और समय बदल गया है। लोग नौकरियों के लिए स्थान बदलने को मज़बूर हो रहे हैं। ऐसे में बुज़ुर्ग घर में अकेले हो गए हैं। जयप्रकाश अग्रवाल ने अपने बिल में कहा है कि परिवार में ही बुज़ुर्ग की उपेक्षा हो रही है। इसे स्वीकार करना चाहिए। उनकी वित्तीय और सामाजिक सुरक्षा होनी चाहिए। बसपा के सांसद विजय बहादुर सिंह ने एक कि़स्सा सुनाया, 'नेपोलियन अपने जनरलों में बुज़ुर्गों को भी रखता था ताकि उनके अनुभव का लाभ उठाया जा सके।Ó विजय बहादुर सिंह ने एक अच्छा सुझाव दिया कि खटिया पर लादकर पेंशनियां लोगों को तहसील क्यों ले जाया जाता है। क्या हर तीन महीने पर तहसील का अफ़ सर बुज़ुर्गों के पास जाकर तस्दीक़ नहीं कर सकते। ये सांसद उस धारणा को भी चुनौती दे रहे थे कि आजकल हर बात में युवा-युवा हो रहा है। सार्वजनिक बहसों से बुज़ुर्ग ग़ायब कर दिए गए हैं। इन सांसदों ने कहा कि मीडिया को भी ऐसे मुद्दे के प्रति जागरुकता फैलाने में भूमिका अदा करनी चाहिए। इसके तुरंत बाद मैं कई चैनलों पर गया। अफ़ सोस ये ख़बर कहीं नहीं थी।

  (ये लेखक के अपने विचार हैं)

2 comments:

  1. 2000 karne ka khayal toh accha hai.
    Magar 1.92 Lakh crore kahan se aenge?
    Kya is sarkar mein itna dum hai?

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  2. प्रिय रविश भेया , आप द्वारा माह फ़रवरी-१३ में दिया हुआ आज १७/11/१३ को हाथ लगा| पढ़ कर अति आनंदित हुआ की आपने बुजुर्गो की वर्तमान दशा का खाका खीचा है | अनंत |

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