Tuesday 16 April, 2013
हिंसा का पाठ आखिर सिखाया किसने?
84 के दंगों से जुड़ा अदालत का एक और फैसला, जगदीश टायटलर के खिलाफ केस फि र खोला जाए। एक बार फि र उन दंगों का जिन्न जिंदा हो गया। हर तरफ, अखबार, टीवी, ट्विटर, फेसबुक पर एक ही बात, क्या हुआ था 1984 के उन 4 दिनों में। किस तरह बर्बरता का खेल खेला गया था । हज़ारों लोग मौत के घाट उतार दिए गए थे। कितने ही खानदान तबाह हो गए।
लोगों को जि़दा जलाया गया, बलात्कार हुए, बच्चों के कत्ल हुए, लूटपाट हुई। यही होता है जब 2002 में हुए गुजरात के दंगों से जुड़ा कोई फैसला आता है। फि र उन कड़वी यादों की तस्वीरें हम सबके सामने परोस दी जाती हैं। देखो क्या हुआ था उस दिन। देखो ईश्वर के नाम पर कैसे इंसान शैतान बन गया था। देखो कैसे भाइयों की तरह रहने वाले लोग एक दूसरे के जानी दुश्मन बन गए थे। मैं दोनों ही दंगों के कुछ पीडि़तों से मिली हूं । 2009 में 84 के दंगा पीडि़तों को शो पर बुलाया और 2012 में गुजरात दंगा पीडि़तों को। घंटों बिताए हैं मैंने उनकी कहानियां सुनने में। उनके बहुत करीब बैठ कर, उनके हाथ थाम कर उनके दर्द को महसूस करने की कोशिश की है मैंने। उनके बरसों से बह रहे आंसुओं को पोंछने की कोशिश की है और उनको अपना गुबार निकालने का मौका दिया है। और इसलिए जब भी उन दंगों की बात छिड़ती है, मेरे दिलो-दिमाग में भी वो भयानक मंजऱ घूमने लगते हैं। और मैंने तो सिर्फ वो कहानियां सुनी हैं, जिन्होंने सुनाई हैं उन पर क्या बीतती होगी, इसकी तो कल्पना भी नहीं की जा सकती।
निरप्रीत कौर के बूढ़े पिता को उनकी आंखों के सामने जि़दा जला दिया गया। बलविंदर ने अपने पूरे परिवार को 84 के दंगों में खो दिया, माता-पिता, भाई, पति, सबको। बलविंदर अपनी बहन और दो बेटियों के साथ पड़ोस के एक घर में छुप कर अपने घरवालों की चीखें सुनने को मजबूर थीं। खौफ के उन पलों में एक भयावह पल ऐसा भी आया जब बलविंदर ने रोती हुई अपनी नन्ही से बच्ची का गला दबा दिया ताकि उसके रोने की आवाज़ सुन कर दंगाई घर में न घुस आएं। हालांकि बलविंदर की बेटी बच गई लेकिन वो आज भी अपनी उस हरकत के बोझ तले जीती हैं। आज भी वो ये याद कर के सिहर उठती हैं कि अगर वाकई उनकी बेटी का दम घुट जाता तो? अब्दुल मजीद ने 2002 में अपने सामने अपनी जवान बेटी का बलात्कार होते देखा था। अब्दुल भाई ने अपने पूरे परिवार को नरोदा पाटिया की हिंसा में खो दिया। अपने सामने अपने बीवी बच्चों को जि़दा जलते देखा। अब्दुल भाई उन दंगों के चश्मदीद गवाह बने। रोंगटे खड़े हो जाते हैं दरिंदगी के वो किस्से सुन कर। बिल्किस बानो की कहानी तो हम सब जानते हैं। बिल्किस के साथ बलात्कार हुआ और उसकी दो साल की छोटी सी बच्ची का कत्ल कर दिया गया। आज बिल्किस की आंखे पत्थर हो चुकी हैं। मैं उससे मिली, उसकी बातें सुनी लेकिन लगा कि वो एक शून्य में जी रही है। वो सब कुछ बता तो रही है लेकिन शायद दर्द की इंतहा सहने के बाद दर्द का अहसास ही भूल चुकी है वो। उसकी बातें सुन कर किसी भी इंसान की रूह कांप जाएगी लेकिन बिल्किस ने तो वो सब कुछ सहा है, बर्दाश्त किया है, सारी दुनिया को सुनाया है।
हमारे देश में सिर्फ ये दो दंगे नहीं हुए। धर्म-ए-मज़हब के नाम पर ये देश न जाने कितनी कुर्बानियां सालों से देता आ रहा है लेकिन हिसा है कि थमने का नाम नहीं लेती। खून के बदले खून। कभी राम के नाम पर तो कभी अल्लाह के। वोट की राजनीति करने वालों के हाथ की कठपुतली बना आम आदमी शैतान का रूप ले लेता है, मज़हब के ठेकेदारों के इशारों पर भोले-भाले लोग गैर-मज़हबी हरकतें करने लगते हैं लेकिन हम सबक लेने को तैयार नहीं।
ये समझने को तैयार नहीं कि अगर ये हिंसा रोकी नहीं गई तो एक दिन ये देश फि र किसी और ताकत का गुलाम बन जाएगा। ये सोचने को तैयार नहीं कि हिंसा का पाठ दरअसल सिखाया किसने? राम ने, कृष्ण ने, मोहम्मद ने, गुरू नानक ने बुद्ध ने या क्राईस्ट ने? कोई तो होगा जिसकी सीख में इतनी ताकत होगी कि एक साधारण दुकानदार, टीचर, सब्ज़ी बेचने वाला, टेलर और इन जैसा कोई भी आम हिंदुस्तानी चाकू, तलवार, त्रिशूल, मशाल उठा लेता है। कोई तो होगा जिसने रंगों की होली खेलने वाले इस प्यारे से देश में लोगों को खून की होली खेलना सिखा दिया। कोई तो होगा जिसने हर धर्म को प्यार से स्वीकारने वाले इस देश में धार्मिकता के नाम पर नफरत को जन्म दिया। कोई तो होगा जिसका धर्म बच्चियों के बलात्कार की, महिलाओं को विधवा बनाने की, अजन्मे बच्चों को जलती आग में फेंकने की, हज़ारों को मौत के घाट उतारने की इजाज़त देता होगा।
क्या आप जानते हैं उसे? पहचानते हैं उसे? मानते हैं उसे? तो फि र उसके इशारों पर नाचते क्यों हैं? उसके कहने पर कातिल क्यों बनते हैं? अपने बच्चों को नफ रत का पाठ क्यों सिखाते हैं?ï इस देश को हिंसा की आग में क्यों झोंकते हैं? सोचिए!
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bharat ke itihas ka sabse ganda adhyaay
ReplyDeleteगांव कनेक्शन निलेश मिश्रा की वजह से बेहद रुमानी था लेकिन आपके इस ब्लॉग ने इस कनेकशन को नई ऊंचाई दी है. कई जगहों पर स्वर उत्तेजित और आक्रोशित दिखा लेकिन जिस ज्वलंत मुद्दे को आपने उठाया है उसके लिए ऐसे स्वर ही ठीक है.. बेहतरीन ब्लॉग
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