Monday 20 May, 2013

यह कैंसर सर्जन कभी नहीं छोड़ेगा गाँव के मरीजों का साथ


धनंजय कुमार 

खैनी और गुटका खा कर मुंह के कैंसर की चपेट में आए बिहार और उत्तर प्रदेश के गाँवों के मरीज इलाज के लिए दिल्ली  कतई नहीं आते। वे सीधे पहुंच जाते हैं मुम्बई के सरकारी टाटा मेमोरियल अस्पताल। गरीब कैंसर मरीजों का मक्का। ऐसा कैंसर के जाने माने सर्जन डॉ. पंकज चतुर्वेदी की वजह से है । गाँव-गाँव में यह मशहूर है कि इस अस्पताल में उन्हें धक्के नहीं खाने पड़ेंगे, क्योंकि वहां उनकी हर मदद को तैयार बैठे हैं डॉ. चतुर्वेदी। दिल्ली में भले पता न हो, बिहार और उत्तर प्रदेश के दूर दराज के गाँवों के लोगों की जुबान पर है इस डॉक्टर का नाम। 

वे यह अस्पताल छोड़ कर कहीं और चले गए तो? उनसे इलाज करा रहे गाँवों के मरीज और उनके परिवार वाले यह सोच कर सिहर उठते हैं। लेकिन यह तय है डॉ. चतुर्वेदी उनका साथ कभी नहीं छोड़ेंगे। पिछले सप्ताह तंबाकू नियंत्रण की अपनी मुहिम के एवज में अंतरराष्ट्रीय अवार्ड लेने दिल्ली आए डॉ. चतुर्वेदी ने गाँव कनेक्शन को भी यह वचन दिया। वे कहते हैं, पिछले 15 सालों से तमाम बड़े निजी अस्पताल मुझे अपने यहां ले जाने के लिए कैसे-कैसे डोरे डाल रहे हैं मैं बता नहीं सकता। एक से एक बढ़ कर प्रलोभन। लेकिन वे चाहे मुझे कुबेर का खजाना भी सौंप दें, मैं यह अस्पताल छोड़ कर कहीं नहीं जाउंगा। गरीब मरीजों की सेवा से मिला आशीर्वाद ही सबसे बड़ा धन है। ये यूपी के बलिया वाले वही डॉ. चतुर्वेदी हैं जिनकी मुहिम का हश्र यह है कि आज 29 राज्यों में गुटके पर बैन हो गया है। इसमें वह राज्य यूपी भी शुमार है जिसके शहर कानपुर को गुटके की नर्सरी माना जाता है।  

पैसे के लोभ में एम्स सहित तमाम सरकारी अस्पतालों को छोड़ कर निजी और कॉरपोरेट अस्पतालों में जाने की अभी मानो होड़ लगी है। कोई कैसे मान ले कि डॉ. चतुर्वेदी उस लोभ का संवरण कर लेंगे। लेकिन वे वचन के पक्के हैं, इसकी गवाह कोई और नहीं वैष्णो देवी और उनकी अपनी मां पुष्पा चतुर्वेदी हैं।  

दिल्ली के लोदी रोड स्थित इंडिया हैबीटेट सेंटर में मदर्स-डे के महज दो दिन पहले 10 मई को डॉ. चतुर्वेदी को गुटके पर प्रतिबंध लगवाने की मुहिम को अंजाम तक पहुंचाने के एवज में विल्केनफेल्ड अवार्ड फ ॉर इंटरनेशनल टुबैको कंट्रोल एक्सेलेंस से नवाजा गया। यह उन्हें एक सप्ताह पूर्व वाशिंगटन डीसी में दिया जाना था। लेकिन उन्होंने वहां आने में असमर्थता जताई। कारण उन्हें वैष्णोदेवी को दिया हुआ एक वचन निभाना था। एक साल पहले उनकी मां पुष्पा चतुर्वेदी को अचानक खून की उल्टियां शुरु हो गई। इलाज की सारी सुविधाएं जुटाने के बीच उन्होंने वैष्णो देवी से मन्नत मांगी कि मां ठीक हो गईं तो डॉ. चतुर्वेदी उनके दर्शन को जाएंगे। माएं बच्चों के लिए मन्नते मांगती ही रहती हैं लेकिन कभी बेटे को अपनी बूढ़ी मां के लिए मन्नत मांगते सुना है आपने । वैष्णोदेवी जाने के लिए टिकट कटा लिए थे, पूरी तैयारी कर ली थी, तभी अमेरिका से बुलावा आ गया। परिवार तक में यह मशविरा मिला वैष्णोदेवी तो फि र कभी चले जाना, अमेरिका में अवार्ड का मौका बार बार नहीं आएगा। लेकिन डॉ. चतुर्वेदी टस से मस नहीं हुए। तो कैंपने फार टुबैको फ्री किड्स  के अमेरिका के सारे पदाधिकारी उन्हें पुरस्कृत करने दिल्ली आ गए । मौके पर उनकी मां भी थी। कैंपेन फार  टुबैको फ्री किड्स की वाइस प्रेजीडेंट योलोदा रिचर्डशन कहती हैं, जब उन्होंने अमेरिका आने से मना किया तो हमें अजीब लगा। लेकिन उनकी उपलब्धि इतनी बड़ी है कि हमें यहां आना पड़ा।

डॉ. चतुर्वेदी कहते हैं, खैनी और गुटके से भारी संख्या में बिहार और उत्तर प्रदेश के गाँवों के लोग मुंह और गले के कैंसर की चपेट में आ रहे हैं। एक रुपए में गुटके का पांच मिलता, हैं । बैन की घोषणा तो हो रही है, उसे जमीन पर लागू कराने की लंबी लड़ाई बाकी है।  मैंने पिछले 15 सालों में अस्पताल में कैंसर के मरीजों एवं उनके परिवारों का जो दर्द और सदमा देखा है, प्रतिज्ञा कर ली है कि मुंह के कैंसर के इन कारकों को ही मिटा कर दम लूंगा। खैनी और गुटके पर बैन के लिए डॉ. चतुर्वेदी ने बच गए कैंसर के भुक्तभोगियों को गोलबंद कर वायस ऑफ  टुबैको विक्टिम्स नामक संगठन बनाया और घूमने लगे यह आवाज सुनाने दिल्ली के पावर के गलियारे में। पूरे देश में गुटके पर बैन बस कुछ महीनों की बात है।

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