Monday 27 May, 2013

देश के गाँवों को टेक्नोलॉजी के और पास ले जाना होगा


शिकागो (अमेरिका)। हिन्दी से लगाव बचपन से ही रहा है मेरा पर देवनागरी में लिखने की शुरुआत अभी जल्दी ही की है। मैं इस कॉलम को अंग्रेजी लिपी में टाइप करता हूँ जो गूगल के ट्रांसलिटरेशन के माध्यम से देवनागरी स्वरुप लेता है। यह ज़रूर है कि भाषा तो हिन्दी ही इस्तेमाल करता हूँ, सिर्फ  हिन्दी शब्दों को अंग्रेजी में टाइप करता हूं।

कहने का तात्पर्य यह है कि एक हिन्दी जैसी समृद्ध भाषा को नई टेक्नोलॉजी कैसे दुनियाभर में पहुंचा देती है। बचपन में स्कूल मास्टर बड़ी मात्रा, छोटी मात्रा और कठिन व्याकरण को दिमाग में यूं डालते थे जैसे कोई दीवार में कील ठोक रहा हो। यह ज़रूर है कि इस तरह की शिक्षा के कुछ फायदे वाकई हुए लेकिन यह तरीका अब बहुत पुराना हो चुका है। मेरे भारतवासी मित्र बताते हैं कि आज भी ऐसी कई पाठशाला हैं जहां वही सिखाने के पुराने तरीके चल रहें हैं जो की आज से पचास साल पहले थे। मुझे लगता है कि राज्य और केंद्र सरकारों द्वारा शिक्षा के नए साधन पाठशालाओं में जल्दी ही उपलब्ध करवाए जाने चाहिए जिससे बच्चों को आधुनिक तकनीकों का लाभ मिले सके। 

यह सही है कि जब भारत के बहुत सारे स्कूलों में आम सहूलियतों का ही पता नहीं है तो ऐसे में आधुनिकीकरण की क्या बात की जाए। मैं अक्सर टेक्नोलॉजी के बारे में लिखता हूं इस आशा में की गाँवों में ऐसे बहुत लोग हैं जो चाहते हैं कि पिछड़ेपन को टेक्नोलॉजी की मदद से दूर किया जाए। विशेषज्ञों का यह कहना है कि आगे चलकर दुनिया में फर्क सिर्फ  अमीरी-गऱीबी का ही  नहीं बल्कि इस बात से भी होगा कि किस के पास ज्ञान है और किस के पास नहीं। उनका तो यह भी कहना है कि आर्थिक असंगतता से ज्यादा, ज्ञान और जानकारी से जुड़ी कमियों का महत्व और बढ़ेगा। उस नजरिये से भी यह बड़ा ज़रूरी है कि इस खाई को हम जितना हो सके उतना जल्दी भर दें।

अमेरिका की पहले से यह नीति रही है कि दुनिया भर से जो तेज़ दिमाग और अलग सोचने वाले दिमाग हैं उन सबको दुनियाभर की सहूलियते देकर यहीं पर बसाया जाए। जिससे इस मुल्क की प्रगति में हमेशा एक नया जोश बना रहेगा। यही वजह है कि भारत से बड़ी संख्या में विद्यार्थी यहां आते हैं, शिक्षा हांसिल करते हैं और फिर यहीं पर बस जाते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि उन का दिमाग अमेरिका की प्रगति में ही लग जाता है। 

इसी सन्दर्भ में अमेरिका की सरकार आजकल इमीग्रेशन रिफॉर्म यानि की अन्य मुल्कों से जो लोग यहां बसना चाहते हैं उनसे जुड़ी नीतियों और कानून में सुधार करने में लगी है। इस सुधार से यह होगा कि जिन विद्यार्थियों की गणित और विज्ञान में ज्यादा रुचि होगी उनको ग्रीन कार्ड, यानि की अमेरिका में हमेशा बस ने की छूट, तुरंत दी जाएगी। अमेरिका की नीतियां हमेशा यही सोच के बनाई जाती हैं कि भविष्य में, आज से पचास सौ साल के बाद, इस देश को क्या फायदा होगा।

यह कोई अकस्मात नहीं है कि पिछले सौ साल में ज़्यादातर खोज इसी मुल्क से हुई। वो इसलिए क्योंकि जो भी लोग इस तरह को खोज के काबिल थे उनको अच्छी शिक्षा और रोज़मर्रा की कठनाइयों से मुक्ति प्राप्त हुई। इन्टरनेट की क्रांति जिसका की गूगल ट्रांसलिटरेशन एक नतीजा है, भी अमेरिका सी ही शुरू हुई। अगर भारत को अपना भविष्य तगड़ा बनाना है तो मुझे लगता है कि इसकी शुरुआत गाँव में बसे ऐसे लोंगों से हो जो की इतनी सारी समस्याओं का हल निकालें। यह जो भी टेक्नोलॉजी क्रांति हम देख रहे हैं वो पिछले बीस साल में हुई है। क्योंकि अब कंप्यूटर इतना तेज़ हो गया है कि इस क्रान्ति का नया दौर अब इससे भी ज्यादा जल्दी और छोटा होगा। रोज़ नयी तरह की क्रांति का उभरना कोई बड़ी बात नहीं रह जाएगी। 

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